(नागपत्री एक रहस्य-20)


विकास ने कहा, यह समुद्र संसार का जनक और संहार कर्ता दोनों ही है, इसी से अमूल्य रत्न और विभिन्न जीवों की उत्पत्ति होती है, और सृष्टि काल के अंत में यही समुद्र अपने ही बनाए हुए जीवन को अपने द्वारा त्यागी हुई भूमि के समेत अपने में समावेश कर लेता है।
                    आपके प्रश्न का मूल सार अभी तो शेष है, वह भी सुने,आशा है आपको प्रसन्नता होगी जो मैं देख पा रहा हूं, और जो रोचक तथ्य आपने दिखाने की कृपा कि वह यह है कि वास्तव में शिव जी और विष्णु जी दोनों ही एक दूसरे की परछाई है।

मैं देख पा रहा हूं कि जब इस शांत समुद्र की तरह मनुष्य यदि उस ब्रह्मकमल जो कि स्वयं ब्रह्मा जी की उपस्थिति को दर्शाता है, जो अपने हृदय स्थल में शिवजी को बसाए हुए हैं, अगर उसी प्रकार मनुष्य ब्रह्माजी के द्वारा दिए हुए मनुष्य जीवन में इस समुद्र की तरह शांत चित्त होकर शिवजी का स्मरण करें तो, उसे शिव जी और विष्णु जी की कृपा एक साथ प्राप्त होती है।
                   और उसे उन दोनों में कोई फर्क जान नहीं पड़ता, और जिस तरह आप स्वयं महामाया मुझसे उत्तम प्रश्न कर उत्तम विचारों को प्राप्त करना चाहती हो, उसी प्रकार यदि भय के समय भी हमारे निर्णय सही होंगे, तो हम उस राह को प्राप्त कर ईश्वर तक पहुंच सकते हैं, जैसे कि आप हमें रास्ता प्रदान कर रहे हो।

तब तो अति प्रसन्न हो और वह देवी मुस्कुराई और आशीष दिया।
फिर उसी तरह तीनों तरफ जाने के लिए आगे का रास्ता प्रकट हुआ और वह बोली, विकास यानी तुम्हारे पूर्वजों का आशीर्वाद और भक्ति ने तुम्हें ही उत्तम विचार प्रदान किए, जिसे सुनकर मैं अति प्रसन्न हूं, लेकिन नियम के अनुसार मुझे तुमसे तीसरा सवाल पूछना ही होगा??

आखिर तीसरा सवाल क्या था??विकास और सुधा फिर मन ही मन सोचने लगे, क्या तीसरे अर्थात् अंतिम सवाल का जवाब मैं दे पाऊंगा???

विकास अंतिम सवाल को सजगता से सुन रहा था, क्योंकि  वह जानता था की ये आखरी सवाल ही अगले ताले की चाबी हो सकती है??
वही सुधा सभी प्रश्न सुन हैरान हो रही थी, और मन ही मन प्रार्थना कर रही थी की उससे कुछ न पूछा जाये,
लेकिन फिर भी वह अपने आप को तैयार रखना चाहती थी, क्योंकि कब उससे ही कुछ पूछ लिया जाये कोई भरोसा नहीं,
                        वह फिर भी अपने आप को छिपाने का प्रयत्न कर रही थी, और वह निरंतर विकास और देवी तो कभी आगे बढ़ती सीढ़ियों के साथ ब्रह्मकमल तक जाने का रास्ता ढूंढ रही थी,

तभी उन देवी ने अपना अगला सवाल प्रस्तुत किया वह बोली,
हे महान कुल के दीपक मैं जानती हूँ , कि यहाँ तक के सफर में तुम दोनों ही ये बात जान चुके हो, कि यहाँ तक तुम्हारा आना कोई साधारण और स्वयं तुम्हारा ही प्रयत्न नहीं।
                ये पहले से ही विदित था कि तुम दोनों यहाँ तक जरूर पहुंच जाओगे, और आते समय जब विस्फोट हुआ, मैं तब ही जान गयी थी, कि तुम दोनों आ चुके हो।

मंदिर की स्थापना के समय ही यह तय था की यहाँ तक पहुंचने वाला कोई भी मानव यहाँ से जाने के बाद यहाँ की किसी भी बात को याद नहीं रख पाएंगे, और तुम्हारे साथ भी यही होगा,
लेकिन शिव दर्शन के पश्चात शायद तुम्हे कुछ बाते याद रह जाये।
          लेकिन अभी वो भी तुम दोनों के लिए संभव नहीं, चलो ये बताओ विकास की तुम्हारा यहाँ आने का क्या मकसद था??? और क्या यहाँ आये बिना वह सम्भव नहीं था??
यदि हो सकता था तो आगे तुम क्या चाहते हो?? क्या इसके आगे जाने का तुम्हारा सामर्थ्य है??क्या अंतिम द्वार के भीतर तुम जाना चाहोगे??और तुम्हे क्या लगता है अंतिम द्वार में क्या हो सकता है???

तभी विकास ने बीच में ही टोकते हुए कहा, हे महादेवी अगर कृपा करो और यह संभव है , तो मैं अगले द्वार में प्रवेश नहीं करना चाहता, संपूर्ण सृष्टि के दर्शन कर लिए अब और आगे कुछ नहीं जानना बस आप की कृपा सदा बनी रहे।
त्रिदेवो का आशीर्वाद मिल गया, इससे ज्यादा जानकर मुझे भला क्या करना।

आगे जो प्रभु की इच्छा होगी तो एक न एक दिन अगले द्वार तक भी पहुंच ही जायेंगे, और इतना तो मैं जान ही चुका हूँ की इसका अगला द्वार इसी मंदिर तक सीमित नहीं, आपका कोटि कोटि धन्यवाद बस यदि आप प्रसन्न हो तो एक जिज्ञासा का समाधान चाहूंगा।
          हे देवी ब्रह्मकमल नुमा आकृति का रहस्य बताने की कृपा करें, विकास का जवाब और उसकी चालाकी जान देवी ने मुस्कराकर कहा, विकास तुम वाकई चतुर और समझदार भी हो, बिलकुल अपने कुल की तरह तुम्हारा यह उत्तर मुझे पसंद आया, क्योकि कुछ भेद यदि न जाने जाएँ तब ही अच्छा है, क्योकि सब कुछ जान लेना ही हर बार समझदारी नहीं होती, और जब त्रिदेवो का आशीर्वाद मिल जाये तब आगे सृष्टि के आगे का विवरण जानना आवश्यक नहीं रह जाता।

तुम्हारे सवाल का जवाब सही लगा इसलिए मैं अब तुम्हे इस ब्रह्मकमल नुमा आकृति का रहस्य बताती हूँ, यह वही ब्रह्मकमल नुमा आकृति है, जिसे तुम लोगो ने प्रवेश के समय देखा था, स्वयं मेरी उपस्थिति में ब्रह्मा जी की यह इच्छा जान की कोई भी भक्त मंदिर तक आकर खली हाथ न लौटे, इसलिए इसे द्वार पर ही उन्होंने खुद स्थापित किया था।
                  यहाँ जो कुछ भी रचा गया और जो तुम देख रहे हो, और जो देख कर आये हो सब कुछ यहां के पुजारी जी के पूर्वजों और कुछ ज्ञानी लोगों के पूर्वजों की उपस्थिती में मय दानव की माया और विश्वकर्मा जी की कृपा का ही परिणाम है।

उन्होंने नागराज से अनुमति और त्रिदेवो का आशीर्वाद ले इस मंदिर का निर्माण करवाया, मैं यह जानती हूँ की इस पीढ़ी के लिए संभव नहीं , लेकिन स्वयं नागराज ने ही अपने छोटे भाई
को इस संपूर्ण मंदिर की सुरक्षा का दायित्वा सौंपा था,
                  अब रही बात अंतिम द्वार तक जाने की तो अभी समय आया नहीं, और तुम्हारी इच्छा जान मैं तुम्हे मंदिर से बहार जाने का रास्ता देती हूँ, तुम दोनों यहाँ की किसी भी घटना का विवरण किसी से नहीं कर पाओगे, जो ज्ञानी होगा तुम्हे देखते खुद ही जान जायेगा, लेकिन मैं विश्वास दिलाती हूँ की एक दिन तुम्हे यह सौभाग्य जरूर मिलेगा ईश्वर तुम दोनों पर कृपा करे,
यह कहते ही अचानक तेज़ रौशनी में जैसे सब कुछ गायब हो गया और वे दोनों मंदिर के बहार आ गए।

इस प्रकार विकास और सुधा खुशी-खुशी उस मंदिर के दर्शन कर अपने घर लौट गए ।

क्रमशः....


   13
1 Comments

Babita patel

15-Aug-2023 02:04 PM

Nice

Reply